Monday, November 17, 2008

BY KANHAIYA SHARMA.


अब मंगते लोगों को महान बनाएंगे.................
घर-गांव में अकसर कुछ लोगों के लिए कहा जाता है कि ये तो हद कर देता है। जब देखो तब मांगता रहता है। घर में भी कुछ लोग होते हैं जो, किसी दूसरे को कुछ भी मिला तो, भले ही कुछ देर पहले उनको भी मिला हो, फिर मांगने लगते हैं। दरअसल ये एक पूरी की प्रजाति है जो, मानती है कि मांगे बिना कुछ मिल ही नहीं सकता। चाहे वो मांगना अपने लिए हो या फिर अपने हित में किसी और के लिए। वैसे ऐसे भीख मांगने वाले समाज में बड़ी हेय दृष्टि से देखे जाते हैं। लेकिन, राजनीति में भिखमगते बड़ा ऊंचा स्थान पा गए हैं। इतना ऊंचा कि भारत रत्न मांगने लगे हैं। कमाल ये है कि भारत रत्न कोई भी अपने लिए नहीं मांग रहा है। अपने लिए क्यों नहीं मांग रहे हैं उसकी वजह अलग है। कुछ जिंदा लोगों के लिए मांग रहे हैं तो, कुछ को मुर्दों को भारत रत्न समर्पित कर उनका सच्चा उत्तराधिकारी होना साबित करना है। सब अपने हित के लि ही जिंदा या मुर्दा को भारत रत्न दिलाना चाहते हैं अभी तक एक बी निष्पक्ष प्रस्ताव भारत रत्न के लिए नहीं आया है। इसकी शुरुआत की ताजा-ताजा भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बने लाल कृष्ण आडवाणी ने। अटल बिहारी बाजपेयी ने आडवाणी का रास्ता साफ किया तो, आडवाणी ने इसका धन्यवाद देने का अनोखा तरीका खोजा। अटल बिहारी बाजपेयी के लिए भारत रत्न की मांग कर डाली। अटल बिहारी बाजपेयी निर्विवाद तौर पर देश के ऐसे नेताओं में हैं जिनका स्थान पार्टी से अलग भी बहुत ऊंचा है लेकिन, आडवाणी की ओर से ये प्रस्ताव आते ही कांग्रेस ने इसे राजनीतिक बढ़त लेने की कोशिश के तौर पर देखा और सिरे से खारिज कर दिया। लेकिन, राजनीतिकों की यही खासियत होती है कि एक बार किसी भी तरह का मुद्दा हाथ लगे तो, उसे थोड़ा कम-थोड़ा ज्यादा के अंदाज में सभी दल आजमा लेना चाहते हैं। वोट बैंक जुटाने से लेकर भारत रत्न बटोरने तक ये फॉर्मूला चालू है। आडवाणी ने बाजपेयी के लिए मांगा तो, मायावती को लगा कि यही सही मौका है कांशीराम का कर्ज उतारने का। मायावती ने कांशीराम को भारत रत्न देने की मांग कर डाली। कांशीराम ने देश में दलितों के उत्थान के लिए जितना किया, मेरा मानना है कि उतना डॉक्टर भीमराव अंबेडकर भी चाहकर नहीं कर पाए थे। लेकिन, क्या मायावती कांशीराम के लिए भारत रत्न सिर्फ इसलिए नहीं मांग रही हैं कि किसी तरह से सवर्णों के ज्यादा नजदीक जाने के आरोपों को राजनीतिक तौर पर खारिज किया जा सके। करुणानिधि की पार्टी डीएमके करुणानिधि के लिए भारत रत्न चाहती है। तो, अजीत सिंह को अपने पिता चरण सिंह अचानक बहुत महान लगने लगे। अजीत सिंह कह रहे हैं कि भारत रत्न तो, चरण सिंह ही होने चाहिए। अभी शायद हर प्रदेश से कई नामों का आना बाकी है। और, हालात जो दिख रहे हैं इसमें भारत रत्न के लिए भी लॉबी तैयार करनी पड़ेगी। वैसे राजनीति सहित ज्यादातर क्षेत्रों में हाल यही है भिख मंगता समाज ही आगे निकल पाता है। मंगतई का सबसे बेशर्म फॉर्मूला जो, हमारी आपकी बातचीत में भी अकसर आता है, खूब इस्तेमाल हो रहा है। फॉर्मूला ये कि कोई भीख नहीं देगा तो, तुमड़ी थोड़ी न तोड़ देगा। कोई किसी काम के लिए, किसी पद के लिए कितना ही योग्य न हो, अगर वो मांग नहीं रहा है या उसक लिए कोई मांग नहीं रहा है तो, फिर समय से तो, कुछ मिलने से ही रहा। अब भारत रत्न देने का मापदंड तो तैयार हो नहीं सका है। सीधा सा फॉर्मूला एक लाइन का ये कि ऐसा व्यक्ति जिसने देश के लिए कुछ अप्रतिम किया हो। अप्रतिम करने के भी अपने-अपने कायदे हैं। इतनी मारामारी में ये भी हो सकता है कि मॉल में मिलने वाली छूट की तरह भारत रत्न देने के लिए पहले आओ-पहले पाओ का फॉर्मूला काम में लाया जाए। इसलिए भैया लगे हाथ मैं भी भारत रत्न के लिए खुद को प्रस्तावित करता हूं। मेरे लिए कोई दूसरा अभी भीख मांगने को तैयार नहीं है। इसलिए मेरे नाम का प्रस्ताव मैं खुद कर रहा हूं। अलग-अलग पार्टियों, प्रदेशों, विचारधारा की तरह ब्लॉग समाज से अभी तक भारत रत्न के लिए मैं अकेला उम्मीदवार हूं। मैं खुश हूं कि अब तक की जिंदगी में पहली बार कुछ मांग रहा हूं वो, भी भी भारत रत्न। जय हो भिखमंगता समाज की, मगतई की अवधारणा की।कन्हैया शर्मा

Sunday, November 16, 2008

खाकी वर्दी की बेदर्दी

पुलिस महकमा आजकल लगातार विवादों में बना हुआ है,और विवादों में रहने का कारण उसकी बंदूक का गलत निशाना नहीं बल्कि गलत शख्स पर सही और सटीक निशाना है। हिन्दी फिल्मों में पुलिस अपने ढीले-ढाले रवैये और देर से पंहुचने के कारण बदनाम थी तो आजकल पुलिस की ज्यादा फुर्ती ही उसकी बदनामी का कारण बन रही है। राहुल राज को पकड़ने के बज़ाय, मुंबई पुलिस ने उसे गोलियों से भून देना ही बेहतर समझा। फुर्ती थी न उसके निर्णय में। लेकिन फुर्ती शारीरिक थी बौद्दिक नहीं। शारीरिक अंगो की चाल तो तेज थी लेकिन दिमाग वही शून्य और अंजाम फिर प्रश्न खड़े करने वाला।
घुटनों के नीचे पुलिस निशाना लगाना नहीं चाहती या फिर उसका निशाना घुटनों के नीचे लग नहीं रहा। किसी दोषी को पकड़ने के बजाय उसे मौत के घाट उतार देना ही अब हमारी पुलिस की नई तस्वीर है। हरियाणा के भिलाई में पुलिसवालों ने निर्दोष कुलदीप का एनकांउटर कर इस तस्वीर से सब को वाकिफ़ भी करवा दिया।
पुलिस की कार्यप्रणाली हमारे देश में लगातार सवालों के घेरे में आती रही है। चाहे वो भीड़ पर गोलियों से कहर बरपाने की ही बात क्यों न हो। ऐसा लगता है जैसे पुलिस के सिपाहियों को प्रैक्टिस के लिये सीधे मैदान पर उतारा जा रहा है, जहां वो अपना निशाना पैना करने के लिये आम आदमी पर लगातार प्रयोग कर रहे हैं। बार-बार पुलिसिया एनकांउटर पर सवाल उठना तो भारत जैसे लोकतांत्रिक देश के लिये वाकई शर्म की बात है। क्या अब इस महकमे में किसी बदलाव की जरूरत नहीं नज़र आती ? आख़िर कब तक आम आदमी पुलिसिया कायरता का निशाना बनता रहेगा। ‘चेंज़’ की जरुरत तो है ही... चाहे वो पुलिस की कार्यप्रणाली में हो या उसकी इमेज़ में। आख़िर जनता के दिल से खाकी वर्दी और पुलिस शब्द का डर हटाना भी तो ज़रुरी है।

नितिन पाण्डेय FMCC

Student Blogging

Dear all,
It is interesting to note that at least some of you have started Blogging. Blogging is a great tool to improve writing. I am sure as soon as this item gets published I will be able to spot the mistakes in it and would feel embarrassed at having made them. I consider this to be an opportunity to learn. I would assume that you would also consider blogging as means to pin point your own mistakes and improve from them. Hence, I suggest that all of you should blog as much as possible. Happy blogging. Ravi

Saturday, November 15, 2008

I AM WRITING BLAH! by mansi kohli

I am writing blah.

Sleeping on the sofa's, is in fact very uncomfortable. The coldness of the leather penetrating through your pants and not giving them a single opportunity to get warmed. My room is going to turn Lavender and one wall ocean turquaz ( turquoise). Ergo, sleeping on the sofa. I could be sleeping in my sister's room but they decided to.. Well never mind. STORY OF THE WORD TURQUOISEThe word turquoise was derived around 16th century from the French language either from the word forTurkish (Turquois) or dark-blue stone (pierre turquin). This may have arisen from a misconception: turquoise does not occur in Turkey but was traded at Turkish bazaars to Venetian merchants who brought it to Europe.Today, I went through all the pictures on my fb profile, looking for the number of pictures of the two people with me, I used to call my bestfriends.Turns out, there aren't many. I miss them, sometimes; no, I missed them today, only 'cause I brought myself to think about them. I don't need to think about them. I do. I don't. I am just fine.My day was boring. I smell like Rose Water. And it's burning my nostrils. Erk.Okay, i am done.

PERHAPS-THE WORD. by mansi kohli.

My this week's obsession word is Perhaps.Perhaps, Lovers turn to Strangers and Strangers turn into Lawyers and Doctors and Dentists.Perhaps, my head ache, is not lack of sleep, but stress. Perhaps, i do really love you. Perhaps, this is not a game. Perhaps I want to go out for a fancy dinner, but i am not a food person. Perhaps, you still think thoughts, which you try not to think. Perhaps, I am a coward. Perhaps i am as sickening as it seems. Perhaps, I do tell the real story. Perhaps, God doesn't know me. Perhaps, i need to sleep. Perhaps, my body would stop shaking and stop being paranoid about earthquakes. Perhaps, my blog makes me insane. Perhaps, the stage horn in front of me is not really purple but its pink. Perhaps, i have a gene for O positive blood. Perhaps, its not sickening to pursue a profession; considering the amount it costs. Perhaps, I do know how much it takes out of them to give me such a chance. Perhaps, I'm hungry. Perhaps. Perhaps, I'll miss my engineering friends. Perhaps, I'll wonder, if the thought crossed your mind even once, how it would be, if you had said yes. Perhaps, its not all butterflies and saaris. Perhaps, its not always. Perhaps, i need to stop existing. Perhaps, it'll matter to somebody, perhaps it wont. Perhaps.Perhaps. Perhaps

Thursday, November 13, 2008

MANSI KOHLI

SLAVED OR ENSLAVED?


Cultural Imperialism,of species, race and individuals.Mesmerized and ostracized,to be sodomized by consumerism.Marketing strategies,Targeting the gullible.Idiopathic tragedies,feed this corporate cannibal.Bohemian virgin child,Lured into a world unkind.Coerced, forced and hurt,to work for dick, Servile.Passports Confiscated,Bonded into sexual labor.Crack whore designated,Gang bang, solo, oral, anal.She fucks to live,and lives to fuck.She left her life,to turn a slut.You were never meant to be free,You were never meant to die,bound in chains imaginary,In this system, You serve I.Born to be, A slave to me,Born to be, Enslaved.

-MANSI KOHLI!

Sunday, November 2, 2008

कुछ कर गुजरने को....खून चला...खून चला..

जिंदगी जीने के दो ही तरीके हैं- एक तो जो हो रहा है उसे होने दो...सहते जाओ!
और दूसरा- आवाज उठाओ और दुनिया को बदलो!
रंग दे बसंती फिल्म में आमिर खान के इस डायलॉग ने युवाओं को अन्याय के ख़िलाफ सोचने पर मजबूर कर दिया था। इस फिल्म के बाद युवाओं पर क्या-क्या असर हुआ ये हम सब ने देखा। चाहे वो आरक्षण के खिलाफ युवाओं का अभियान हो या फिर कुछ और। अपनी मिट्टी के लोगों के प्रति हो रहे अन्याय को शायद राहुल राज भी नहीं सहन कर पाया था। तभी तो अपने ही उपनाम ‘राज’ से वो नफरत करने लगा था। वो भी अपनी आवाज उपर तक ही पहुँचाने निकला था। हाथों में तमंचा लिए उसका मकसद वो नहीं था, जो मनसे के कार्यकर्ताओं का हाथों में डंडे लिए होता है। उसने इस तमंचे से तो किसी को नुकसान भी नहीं पहुँचाया था, जबकि डंडों ने तो एक उत्तर भारतीय की जान तक ले ली थी। अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने निकले इस युवा के साथ ही अन्याय हो गया। दिवाली के एक दिन पहले बुझ गया राहुल के जिंदगी का दीया। अंत वही... जो “रंग दे बसंती” के पांच सूरमाओं का हुआ। शायद उसे नहीं पता था कि इस देश में जिंदगी पहले तरीके से ही जी जाती है।
:-नितिन पाण्डेय